Vikramashila University: विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भूले-बिसरे खंडहर, बिहार की ज्ञानगाथा

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

जब भी हम भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों की बात करते हैं, नालंदा  का नाम सबसे पहले आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार राज्य के भागलपुर की धरती पर एक और ऐसा ही गौरवशाली विश्वविद्यालय था विक्रमशिला, जो कभी बौद्ध शिक्षा का एक अद्वितीय केंद्र था? आज यह स्थान खंडहरों में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसकी दीवारों में छुपी कहानियाँ आज भी इतिहासप्रेमियों को आकर्षित करती हैं ।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय का इतिहास । History

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के शक्तिशाली शासक राजा धर्मपाल ने 8वीं शताब्दी के अंतिम चरण में की थी। यह विश्वविद्यालय उन कुछ प्रमुख केंद्रों में से एक था, जहाँ महायान और वज्रयान बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन होता था । नालंदा, ओदंतपुरी और सोमपुरी की तर्ज पर विकसित विक्रमशिला का उद्देश्य था और योग्य भिक्षुओं और विद्वानों का निर्माण था ।

विक्रमशिला के बारे में हमें मुख्य रूप से तिब्बती स्रोतों, विशेषकर 16वीं-17वीं शताब्दी के तिब्बती भिक्षु इतिहासकार तारानाथ के लेखन के माध्यम से जानकारी मिलती है ।

शिक्षा और छात्र जीवन । Education and Students

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

विक्रमशिला सबसे बड़े बौद्ध विश्वविद्यालयों में से एक था, यहाँ लगभग 100 से ज़्यादा शिक्षक और लगभग एक हज़ार विद्यार्थी अध्ययन करते थे । विश्वविद्यालय विषयों में बौद्ध दर्शन, तर्कशास्त्र, व्याकरण, ज्योतिष, चिकित्सा और भाषाओं का समावेश था ।

विक्रमशिला मे शिक्षा प्रणाली अत्यंत कठोर और अनुशासनात्मक थी । प्रवेश प्रक्रिया भी परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम से होती थी । यहाँ से प्रख्यात विद्वान निकले जिन्हें अक्सर बौद्ध शिक्षा, संस्कृति और धर्म का प्रसार करने के लिए विदेशों से आमंत्रित किया जाता था ।

वास्तुशिल्प और डिज़ाइन । Design

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

विक्रमशिला विश्वविद्यालय का स्थापत्य बेहद भव्य और व्यवस्थित था ।

  • मुख्य विहार । Main Monastery: विश्वविद्यालय का केंद्र एक विशाल महाविहार  था, जिसमें चारों ओर अध्ययन कक्ष (Cells) और बीच में प्रार्थना हॉल था । जो ईंटों से बना एक आयताकार ढांचा था, इसके चारों ओर 177 छोटे-छोटे कोठरीनुमा कमरे थे जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी रहते थे । हर कोठरी में ध्यान और अध्ययन के लिए उपयुक्त स्थान था ।

  • प्रवेश द्वार । Enterance : मुख्य प्रवेश द्वार अत्यंत विस्तृत और अलंकृत था, जिसके दोनों ओर बौद्ध प्रतीकों की खुदाई थी। प्रवेश के बाद चौकोर प्रांगण (courtyard) के चारों ओर छज्जेदार गलियारे (verandahs) बने थे जो ध्यान और प्रवचन के लिए उपयोग में आते थे ।
  • स्तूप । Stupa: विश्वविद्यालय परिसर में एक विशाल केंद्रीय स्तूप स्थित था, जो धार्मिक गतिविधियों का केंद्र था ।  स्तूप की परिक्रमापथ (circumambulatory path) के साथ बनीं ईंट की दीवारों पर बुद्ध की मूर्तियाँ और जीवन प्रसंग खुदे हुए थे ।

  • भित्तिचित्र और मूर्तिकला । Sculpture : विक्रमशिला विश्वविद्यालयमें अनेक स्थानों पर पाल कालीन मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं । बुद्ध, तारा, अवलोकितेश्वर जैसे बौद्ध देवताओं की मूर्तियाँ बेहद कलात्मक थीं। दीवारों और स्तंभों पर भित्तिचित्र (murals) भी बनाए गए थे, जो अब काफी हद तक नष्ट हो चुके हैं ।

विक्रमशिला की गिरावट । Decline of Vikramshila

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

विक्रमशिला की स्थापना पाल वंश के शासक धर्मपाल ने की थी और यह वंश इसका संरक्षक बना रहा था । परंतु 12वीं शताब्दी तक पाल साम्राज्य का पतन हो गया, जिससे विश्वविद्यालय की राज्य सुरक्षा और आर्थिक सहायता समाप्त हो गई थी । इसके साथ 12वीं शताब्दी तक भारत में बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा था और धीरे-धीरे हिन्दू धर्म पुनः प्रबल हुआ और शैव एवं वैष्णव परंपराओं ने सामाजिक स्तर पर स्थान बनाना शुरू किया ।

मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने 12वीं शताब्दी में जब आक्रमण कर नालंदा को जलाया, उसी दौरान खिलजी की सेना ने विक्रमशिला के बौद्ध तंत्र, दर्शन, चिकित्सा, व्याकरण और तर्कशास्त्र को आग लगा दी थी, जिससे अमूल्य बौद्ध साहित्य नष्ट हो गय थे । यह कहा जाता है कि पुस्तकालय कई महीनों तक जलता रहा था और विक्रमशिला बर्बाद कर दिया गया। सदियों तक यह स्थल मिट्टी के नीचे दबा रहा, जब तक कि 19वीं सदी के अंत में इसे फिर से खोजा नहीं गया था ।

वर्तमान स्थिति । Current Situation

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

विक्रमशिला विश्वविद्यालय के अवशेष बिहार के भागलपुर जिले के अंतिचक गाँव में स्थित हैं। यहाँ मुख्य रूप से एक क्रूसीफॉर्म (क्रूस के आकार का) ईंट स्तूप, 208 मठीय कक्ष (52 प्रत्येक दिशा में), एक पुस्तकालय भवन, और कई छोटे स्तूपों के अवशेष पाए जाते हैं। ये संरचनाएँ पाल वंश (8वीं से 12वीं शताब्दी) की वास्तुकला और शिक्षा प्रणाली की समृद्धि को दर्शाती हैं ।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने यहाँ खुदाई कर अनेक स्तूप, शिलालेख और कलाकृतियाँ खोजीं है । हालांकि, प्रचार और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण यह स्थल आम जनता की नजरों से दूर है, लेकिन ASI ने इस स्थल को ‘आदर्श स्मारक योजना’ के तहत विकसित करने का निर्णय लिया है, जिसमें पर्यटकों के लिए सुविधाओं का विस्तार और संरचनाओं का संरक्षण शामिल है ।

पर्यटन की संभावनाएँ । Tourism

विक्रमशिला विश्वविद्यालय

  • विक्रमशिला के उत्खनित स्थल में मुख्य स्तूप, मठीय कक्ष, पुस्तकालय भवन और अन्य संरचनाओं के अवशेष देखे जा सकते हैं, जो प्राचीन वास्तुकला और शिक्षा प्रणाली की झलक प्रदान करते हैं । स्थानीय गाइडों की सहायता से इतिहास को जीवंत किया जा सकता है ।

  • गंगा नदी में स्थित यह अभयारण्य दुर्लभ गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है, जो पर्यटकों के लिए एक अतिरिक्त आकर्षण है ।
  • भागलपुर और आसपास के क्षेत्रों की स्थानीय संस्कृति, हस्तशिल्प और व्यंजनों का अनुभव भी पर्यटकों के लिए आकर्षक हो सकता है ।

  • मिथिला पेंटिंग, बौद्ध ध्यान केंद्र, और हैंडीक्राफ्ट मेले जैसी गतिविधियाँ, यहाँ धार्मिक पर्यटन के साथ-साथ शैक्षणिक पर्यटन की भी अपार संभावनाएँ हैं ।

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